शहर अजनबी
—————–

ना ज़मी ना बसर हादसों का शहर
हम चले छोड़कर बेबसों का शहर

हो मुबारक तुम्हें है तुम्ही पर फ़िदा
अजनबी -अजनबी दोस्तों का शहर

मौन रहता है जो हर समय हर घड़ी
खोए खोए हुए रास्तों का शहर

आए जिसके लिए कितने दिल तोड़कर
खो गया है कहीं हसरतों का शहर ..

सपना सक्सेना
स्वरचित

2 thoughts on “

Leave a comment